ग्वालियर
कोर्ट के निर्देश पर 30 दिन साथ रहने के बाद दंपती ने अपने मतभेद सुलझा लिए हैं। वे अब तलाक नहीं चाहते हैं।
उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस लेने और पत्नी द्वारा पति को भरण-पोषण की राशि लौटाने पर सहमति जताई है।
न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र यादव की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ ने कहा कि जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से एक साथ रहना चाहते हैं, तो न्यायालय का उद्देश्य भी पारिवारिक जीवन में शांति और स्थायित्व स्थापित करना है।
प्रभाकर और रचना (परिवर्तित नाम) नामक इस दंपती के बीच छोटी-छोटी बातों पर विवाद शुरू हुआ था, जिसके चलते वे वर्ष 2022 में अलग हो गए थे।
इसके बाद भिंड कुटुंब न्यायालय में तलाक का आवेदन दायर किया गया था, जिसे वर्ष 2023 में खारिज कर दिया गया।
प्रभाकर ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत हाईकोर्ट में तलाक की याचिका दायर की थी।
सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने दोनों पक्षों को एक महीने तक साथ रहने का निर्देश दिया था, ताकि वे आपसी मतभेद सुलझा सकें।
एक माह बाद 9 अक्टूबर को दोनों पक्ष अदालत में फिर से उपस्थित हुए और बताया कि वे साथ रहना चाहते हैं। पत्नी ने कुछ मामूली शिकायतें रखीं, लेकिन अदालत ने कहा कि वैवाहिक जीवन में ऐसी बातें आपसी समझ और सहनशीलता से हल की जा सकती हैं।
पति के खिलाफ दायर सभी आपराधिक और दीवानी प्रकरण पत्नी15 दिनों में वापस लेंगी।
पति की जमा कराई गई स्थायी भरण-पोषण राशि वापस की जाएगी।
दोनों आपसी शांति और सम्मान से साथ-साथ रहेंगे। एक-दूसरे को किसी भी प्रकार की प्रताड़ना नहीं देंगे।
शासकीय अधिवक्ता अंजलि ग्यानानी को शौर्या दीदी बनाया गया। वह अगले 6 माह तक पत्नी का मार्गदर्शन करती रहेंगी, जिससे दाम्पत्य जीवन में स्थायी शांति बनी रहे।